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UP विधान परिषद में कैग रिपोर्ट पेश, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे की जमीन खरीद में 3.65 करोड़, UPSRTC में 69.84 करोड़ की गड़बड़ी

बुधवार को कैग की रिपोर्ट उत्तर प्रदेश विधान परिषद की पटल पर रखी गई। रिपोर्ट में लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे की जमीनों की खरीद के लिए भुगतान में गड़बड़ी सामने आई है। साथ ही वन विभाग में जेसीबी की जगह मोपेड से गड्ढे खोदवाने के मामले पर भी कैग ने पेमेंट के बिल वाउचर की जांच की बात लिखी है। साथ ही इस रिपोर्ट में लखनऊ के चक गंजरिया फार्म में बने उच्चस्तरीय कैंसर इंस्टीट्यूट के निर्माण कार्यों में हुए खर्च पर भी सवाल उठाए गए हैं। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग कि रिपोर्ट में साल 2016 से 2019 तक में हुए कामों की गड़बड़ियों का जिक्र किया गया है। उत्तर-प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में फास्टैग और वन विभाग में पौधरोपण में हुए घपलों की पूरी कहानी भी कैग रिपोर्ट में है। सपा सरकार में बने लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे के लिए जमीन खरीद में तय दर से ज्यादा पर खरीद कर 3.65 करोड़ रुपये का भुगतान किया। कन्नौज के पास यह जमीन लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए ली गई थी। कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस मामले में सरकार का जवाब नहीं मिल सका। पौधरोपण के लिए मोपेड से गड्ढे खोदवाए गए कैग की रिपोर्ट में पौधरोपण के लिए मोपेड से खुदवाने का जिक्र भी है। वन विभाग में जेसीबी की जगह मोपेड से गड्ढे खोदवाने के मामले में हुए भुगतान के सभी बिल वाउचर की जांच होनी चाहिए। कैग की रिपोर्ट में सरकार से यह सिफारिश की गई है। यह भी कहा गया है कि 1.37 करोड़ रुपए के इस घपले में दोषी अफसरों के खिलाफ समय से और उचित कार्रवाई होनी चाहिए। कैग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2016-17 से 2018-19 के बीच 20 वन प्रभागों में पौधरोपण के लिए गड्ढे खोदने, मिट्टी के काम, परिवहन और संरक्षण कार्यों के लिए ट्रैक्टर व जेसीबी का इस्तेमाल दिखाया गया। लेकिन ट्रैक्टर व जेसीबी के नाम पर जिन वाहनों के नंबर दर्ज किए गए, वे जांच में मोटरसाइकिल, जीप, स्कूटर और मोपेड के निकले। उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम ने लखनऊ में कैंसर इंस्टीट्यूट बनवाया। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना को लागू करने में काफी देरी हुई। परियोजना पर 64.60 करोड़ रुपये अधिक खर्च हुआ।यूपीआरएनएन ने निर्माण एजेंसी और आर्किटेक्ट को 19.75 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान हुआ। कंक्रीट के काम में भी 4.02 करोड़ रुपये अधिक भुगतान हुआ। निर्माण एजेंसी को 3.25 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान हुआ। ट्रांसफार्मर, डीजी सेट्स और स्टैबलाइजर की अधिक संख्या में खरीद की गई, जिससे 2.30 करोड़ रुपये का गैर जरूरी खर्च हुआ। इस परियोजना में 36.68 करोड़ रुपये का ब्याज वर्ष 2015-21 केबीच मिला, जिसे सरकारी खजाने में जारी नहीं किया गया।
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