8-4 का समीकरण बस्तर में इस चुनाव का दिलचस्प समीकरण है। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले झीरम कांड ने सत्तारूढ़ पार्टी को काफी नुकसान हुआ था। भाजपा के पास फिलहाल चार सीटें हैं। उसके लिए यह समीकरण बदलना जरूरी है, क्योंकि इसके बिना इस बार प्रदेश में सरकार सरकार का रिपीट होना असंभव है। कांग्रेस के लिए 8 के समीकरण को बचाना या इससे बेहतर होना जरूरी है। क्योंकि सत्ता परिवर्तन का सपना तभी साकार होगा। दिलचस्प यह भी कि इस बार बस्तर की 12 में से 8 सीटें ऐसी हैं, जहां परंपरागत प्रतिद्वंदी आमने-सामने हैं। वहीं 4 सीटें ही ऐसी हैं, जहां भाजपा या कांग्रेस ने अपना चेहरा बदला है। प्रदेश में भले ही भाजपा की सरकार रही हो लेकिन बस्तर के पिछले आंकड़े कांग्रेस के लिए सर्वश्रेष्ठ रहे हैं। यह भी याद रखना होगा कि पिछले चुनाव ने इस मिथक को तोड़ा था कि सत्ता की चाबी बस्तर की 12 सीटें हैं। अनुमान के विपरीत बस्तर और सरगुजा में खराब प्रदर्शन के बावजूद भाजपा मध्यक्षेत्र में अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सरकार बचाने में सफल रही थी। इस लिहाज से देखा जाए तो बस्तर में भाजपा के खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। और कांग्रेस के पास खोने के लिए बहुत कुछ है। दरअसल यहां सीटें कम ज्यादा पाने से ज्यादा दोनों ही दलों के सामने पिछले चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती है। सुकमा. मुर्गा-दारू नहीं चलेगा...बकरा भात नहीं चलेगा। जी हां...ये अपील उन प्रत्याशियों के लिए हंै जो इस प्रकार के चंद आयोजनों से मतदान प्रभावित करते हैं। तस्वीर सुकमा जिले के पोलमपल्ली गांव की है। चुनाव आयोग को भी इस बात का अंदेशा है। इसलिए आयोग ने इनसे बचने के लिए दीवारों पर ऐसे संदेशों के माध्यम से मतदाताओं को जागरूक कर रहे हैं।