प्रदेश में डेयरी के दूध की जिन खाली थैलियाें काे हम कचरा समझकर डस्टबिन में फेंक देते हैं, अब उन्हीं थैलियाें काे डेयरी पैसा देकर लाेगाें से वापस खरीदेगी। इसके लिए हर डेयरी बूथ पर कलेक्शन सेंटर बनाए जाएंगे। प्रदेश में राजस्थान काॅ-ओपरेटिव डेयरी फेडरेशन (आरसीडीएफ) इसकी डीपीआर बना रहा है। सभी डेयरियों को निर्देश जारी आरसीडीएफ यह प्लानिंग प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर से डेयरियाें काे प्लास्टिक से बनी दूध की थैलियाें के निस्तारण के लिए जारी किए नाेटिस के बाद बना रहा है। मंडल की ओर से जारी किए नाेटिस के अनुसार प्रदेश की सभी डेयरियाें काे इसकी डीपीआर बनाकर देनी है कि वे कैसे प्लास्टिक से बनी दूध की थैलियाें का निस्तारण करेंगे, ताकि पर्यावरण संरक्षण हाे। इसके बाद असरसीडीएफ प्लान बना रहा है कि सभी डेयरी पर बूथ पर कलेक्शन सेंटर बनाकर खाली थैलियाें की एक निश्चित राशि तय करके उपभाेक्ताओं से वापस ली जाए और वहां से थैलियां डेयरी में एकत्रित करके वहां उनका निस्तारण किया जाए। प्रदेश में ऐसी 21 डेयरियां हैं भीलवाड़ा सरस डेयरी से राेज करीब डेढ़ लाख लीटर दूध की बिक्री है। इसमें 250 ग्राम से लेकर 5 किलाे तक की करीब 2.15 लाख थैलियां काम में ली जाती हैं। इन 2.15 लाख थैलियाें काे बनाने में करीब करीब 800 किलाे पाॅलिथीन काम में ली जाती है। यानी अकेली भीलवाड़ा डेयरी की थैलियाें काे बनाने में राेज करीब 800 किलाे पाॅलीथन हाेती है। इसके अलावा डेयरियां छाछ भी थैलियाें में बेचती है। इस तरह प्रदेश की सभी 21 डेयरियाें में राेज हजाराें किलाे पाॅलीथन दूध व छाछ की थैलियां बनाने में काम में ली जाती है।