सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने पर फैसला सुनाया। शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि केंद्र सभी महिला अफसरों को 3 महीने में सेना में स्थाई कमीशन दे। यह भी साफ किया कि महिलाओं को कमांड पोजिशन (नेतृत्व या मोर्चे पर तैनाती) दिए जाने से रोका नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर केंद्र की याचिका पर फैसला सुनाया। फैसले की खास बातें जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने कहा, ‘‘केंद्र ने शारीरिक क्षमता और सामाजिक मान्यताओं को आधार बनाकर कहा था कि महिलाओं को बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती। इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह तर्क विचलित करने वाला और समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।’’ ‘‘बीते समय में महिला अफसरों ने बहादुरी के लिए कई मिसालें कायम कीं। अब इस सोच में बदलाव की जरूरत है। सरकार को भी फौजों में लिंगभेद खत्म करना चाहिए।’’ ‘‘महिला अधिकारियों की नौकरियों को लेकर केंद्र सरकार के नीतिगत फैसले बहुत ही अनोखे रहे हैं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद केंद्र को महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देना चाहिए था। महिलाओं को स्थाई कमीशन न देना केंद्र का पूर्वाग्रह ही दिखाता है।’’ ‘‘महिलाओं का सेना में शामिल होना एक विकास की प्रक्रिया दिखाता है। किसी भी सैनिक को जिम्मेदारी निभाने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम होना चाहिए।’’ हाईकोर्ट ने क्या कहा था 2010 में हाईकोर्ट ने महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने की बात कही थी। केंद्र ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी। इसमें कहा कि भारतीय सेना में यूनिट्स पूरी तरह पुरुषों की है और पुरुष सैनिक महिला अधिकारियों को स्वीकार नहीं कर पाएंगे। अभी तक यह स्थिति सेना में महिलाएं शॉर्ट सर्विस कमीशन के दौरान आर्मी सर्विस कॉर्प्स, आर्डनेंस, एजुकेशन कॉर्प्स, जज एडवोकेट जनरल, इंजीनियर, सिग्नल, इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक-मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच में ही एंट्री पा सकती हैं। उन्हें युद्धक सेवाओं (इन्फैंट्री, उड्डयन और तोपखाने) में काम करने का मौका नहीं दिया जाता।