आप किसी भी विभाग ,विद्यालय,या कार्यालय में जाइए ,आपको आरक्षित सीट का बोर्ड टंगा हुआ जरूर मिलेगा .अब चाहे आरक्षण प्राप्त करने वाले उम्मीदबार योग्य हों या ना हों लेकिन ये ख़ास लाभ तो उन्हें उनकी जाती विशेष में पैदा होने वाले दिन से ही प्राप्त हो जाता है .अब सवाल ये उठता है की आरक्षण में खराबी ही क्या है ?आखिर यह तो नीची जाती के लोगों को उनका हक़ देने और उन्हें विकास की धारा से जोड़ने के लिए ही तो बनाया गया है .नहीं ,अपितु आरक्षण की वजह से योग्य उम्मीदवार अपने सपनो और आजीविका के साधन को प्राप्त करने से वंचि हो रहे हैं .और उनका कसूर मात्र इतना है की एक ऊँची जाती में पैदा हुए हैं और उनको सपने दिखाकर या उकसाकर या उनकी संकुचित मनोस्तिथी का फायदा हमारे तथाकथित समाज के ठेकेदार और राजनेता नहीं उठा सकते .इसलिए ये सफ़ेद कालर वाले हमारे आका वोट बेंक की राजनीती का घिनौना खेल खेलते हैं और मोहरा बनाते हैं हमारे निम्न तबके के और निम्न जाती के लोगों को .इन आकाओं को बहुत अच्छी तरह से यह पता होता है की हर निम्न जाती का आदमी अपने आपको उच्च दर्जे का कहलाने और कम मेहनत कर ऊपर तक जाने में ज्यादा विश्वास रखता है .पार्टियो ने आरक्षण का मुद्दा उठा और आरक्षण प्रदान करवाकर इन जाती विशेष की आदते इतनी ख़राब कर दी हैं की इन जातियों के लोग स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से आगे बढ़ने के वजाय आरक्षण का मुंह ताकते हैं .आखिर बिना हाथ आगे बढाए फल प्राप्त करना किसे बुरा लगता है ?एक समय था जब निम्न जाती के लोगों को योग्य होते हुए भी अस्वीकार कर दिया जाता था ,तब आरक्षण देना उचित भी था .लेकिन अब जब यह भेदभाव पूरी तरह से समाप्त हो ही चूका है और आदमी को उसकी योग्यता से आँका जाने लगा है फिर आरक्षण देने का क्या औचित्य है ये मुझे समझ नहीं आता .आज जब कड़ी प्रतिस्पर्धा का युग है हर बच्चा अपना बेहतर देने की कोशिश में जी जान लगा रहा है ,कड़ी मेहनत कर रहा है .तब हर वर्ग अपने लिए आरक्षण की मांग उठा उन मेधावी बच्चों को मायूस और उनकी मेहनत के प्रतिफल से दूर ले जा रहा है .मैंने अपने समाज के ही कई गरीब और मेधावी छात्रों को नब्बे और पिच्यानवे प्रतिशत अंक लाने के वावजूद बेरोजगारी से ग्रसित देखा है और बेकारी व् असफलता की भावना से दुखी हो आत्महत्या करते भी देखा है इस आरक्षण की वजह से कई योग्य विध्यार्तियों ने सड़क पर अपनी अंक तालिकाओं की होली तक जलाई है और उसमे कूद आत्मदाह भी किया है .लेकिन इससे पार्टियों पर कोई असर नहीं होता क्यूंकि कुर्सी पर बेठने वाले जमीन पर बेठने वालों की न परवाह करते हैं ना ही करेंगे ,उन्हें तो बस वोट और नोट का फलसफा आता है वाही कहते हैं वाही सुनते हैं और वाही यह समझते भी हैं .लेकिन मैं पूछती हूँ क्या आरक्षण वास्तव में समाज के लिए सही है ?क्या आज के युग में जबकि हम योग्य तो हमे आरक्षण मिलना चाहिए ?मेरा मानना है की विशेष जाती के लोगों को शिक्षा ,भोजन ,आवास ,चिकित्सा,तथा एनी मूलभूत जरूरत और सुबिधाएं तो निशुल्क मुहैया करायी जनि चाहियें ताकि वह योग्य बन सके और अपन इ योग्यता से अपना मुकाम हासिल कर सके मगर आरक्षण देकर उनकी आदते नहीं बिगाड्नी चाहिए .ये वाकई बहुत बड़ा दुर्भाग्य है हमारे देश के नौनिहालों का की जिनके पास योग्यता है वह अनारक्षित हैं और जो अयोग्य हैं वो आरक्षित हैं .हमारे संवैधानिक अधिकारों में समानता का आधिकार भी शामिल है जिसका अर्थ है की सभी को बिना किसी भेदभाव के सामान अवसर प्रदान किये जाये जिससे की नागरिक अपनी योग्यता का उपयोग अपने देश की प्रगति और विकास के लिए कर सके .परन्तु आरक्षण समानता को नहीं असमानता को दर्शाता है हमारे देश को प्रगति नहीं वरन अवनति की और ले जा रहा है .मेरी प्रार्थना है देश के आकाओं से की आरक्षण को मुद्दा बनाकर कमजोर व्यक्तियों की भावनाओं और योग्य के भविष्य से ना खेले बल्कि योग्यता को आधार बनाकर युवा पीढ़ी का विस्वास जीतकर एक नए भारत के निर्माण की नींव रखें .कितनी तकलीफ की बात है जो आर्ताक्षण उन्नीस सौ पचास में सिर्फ दस वर्षों के लिए लागू किया गया था जिससे की पिछड़ी जाती एनी वर्गों से तारतम्य स्थापित कर सके मगर उन दस वर्षों के बाद भी इसे आगे जारी रखा गया और ना जाने कब तक जारी रखा जाएगा और क्यों?सुप्रीम कोर्ट ने भी यह तो माना है की असमानताएं समाप्त होनी चाहिए मगर यह भी टिप्पड़ी की है की ऐसा नहीं लगता की इस दिशा में गंभीर प्रयास हो रहे है .आरक्षण से पिछड़ापन दूर होने के वजाय बढ़ा है .प्रसिद्ध गजलगो दुष्यंत कुमार की ये ग़ज़ल -"हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निअक्लनी चाहिए "