हमारे संविधान के अनुसार कोईभी व्यक्ति अपनी मर्जी सेअपना धर्म बदलने के लिए स्वतंत्रहै. किसी भी व्यक्ति का जन्म चाहेकिसी भी धर्म में क्यों न हुआ हो,वो वयस्क होने पर अपना धर्म बदलसकता है. धर्म को बदलने परव्यक्ति की सम्पूर्ण जीवनशैली ही बदल जाती है.उसकी धार्मिक मान्यताएं, रहन-सहन, खान-पान, पूजा पद्धति जैसेअनेकों परिवर्तन आ जाते हैं जिनमेंसामंजस्य बिठाने में पीढियां लगजाती हैं.जाति जो वास्तव में मात्र एकखानदानी पेशा ही है उसको बदलनेका कोई प्राबधान नहीं है. जाति सेसुनार अगर लोहे का काम करेतो भी लोहार नही बल्कि सुनारही कहा जायेगा, ब्राह्मण चाहे सेना मेंहो तो भी उसे क्षत्रीय नहीं ब्राह्मणही माना जाएगा, बढई अगरलकड़ी का काम छोड़कर व्यापार करेतो भी उसे वैश्य नहीं बल्कि बढईही कहा जाता है, क्षत्रीय अगर कपडेसिलने का काम करेतो भी वो दर्जी नही क्षत्रीयही रहेगा.ऐसा प्रावधान हिंदुत्व विरोधी नेताओंने, हिन्दुओं को कमजोर करने के लियेजानबूझकर बनाया है. एक तरफ़ येनेता जाति-पाति को मिटानेका दावा झूठा दावा भी करते रहते हैंहमारे संविधान के अनुसार कोईभी व्यक्ति अपनी मर्जी सेअपना धर्म बदलने के लिए स्वतंत्रहै. किसी भी व्यक्ति का जन्म चाहेकिसी भी धर्म में क्यों न हुआ हो,वो वयस्क होने पर अपना धर्म बदलसकता है. धर्म को बदलने परव्यक्ति की सम्पूर्ण जीवनशैली ही बदल जाती है.उसकी धार्मिक मान्यताएं, रहन-सहन, खान-पान, पूजा पद्धति जैसेअनेकों परिवर्तन आ जाते हैं जिनमेंसामंजस्य बिठाने में पीढियां लगजाती हैं.जाति जो वास्तव में मात्र एकखानदानी पेशा ही है उसको बदलनेका कोई प्राबधान नहीं है. जाति सेसुनार अगर लोहे का काम करेतो भी लोहार नही बल्कि सुनारही कहा जायेगा, ब्राह्मण चाहे सेना मेंहो तो भी उसे क्षत्रीय नहीं ब्राह्मणही माना जाएगा, बढई अगरलकड़ी का काम छोड़कर व्यापार करेतो भी उसे वैश्य नहीं बल्कि बढईही कहा जाता है, क्षत्रीय अगर कपडेसिलने का काम करेतो भी वो दर्जी नही क्षत्रीयही रहेगा.ऐसा प्रावधान हिंदुत्व विरोधी नेताओंने, हिन्दुओं को कमजोर करने के लियेजानबूझकर बनाया है. एक तरफ़ येनेता जाति-पाति को मिटानेका दावा झूठा दावा भी करते रहते हैंऔर साथ ही हिन्दुओं छोटे-छोटेगुटों में बांटकर कमजोर बनाये रखनेकी साजिश भी करते रहते हैं. हिन्दूभी इन हिंदुत्व बिरोधियों की चाल मेंफंसकर दशकों से आपस में लड़करकमजोर हो रहे है और हिंदुत्वबिरोधी इसका लाभ उठा रहे हैं.कोई भी सरकारी फ़ार्म भरते समयहिन्दू को अपने खानदानी पेशेका उल्लेख करना पड़ता हैजबकि अन्य किसी भी धर्म केव्यक्ति के अपने खानदानी पेशेकी जानकारी देने की जरुरतनहीं पड़ती. कोईव्यक्ति या संस्था अगर हिन्दुओंको संगठित करने की कोशिश करती हैतो उनको साम्प्रदायिक कहकरअपमानित किया जाता है और कोईगैर-हिंदु संगठित होते हैतो उसको भाईचारे की मिशाल बनाकरपेश किया जाता है.हिन्दुओं में जातिप्रथा को लेकरजानबूझकर झगडे खड़े किये जाते हैं.अगर कही कोई हिन्दू व्यक्ति अपनेअज्ञान, लालच, दबाव अथवा दुसरेविवाह की खातिर अपना धर्मबदलता है, तो उस समयजातिप्रथा के नाम पर हिन्दुओंको कोसा जाता है और अगरकिसी अल्पसंख्यक समुदायका व्यक्ति हिन्दू बनना चाहता हैतो उसको बहुसंख्यकको अल्पसंख्यक पर जुल्मबताया जाता है.हिन्दुओं को चाहिएकि वो अपनी जाति को केवलखानदानी पेशा ही बताएं और अंतर-जातीय विवाहों को अपना अधिक सेअधिक समर्थन दें.विधर्मियों को अपनी जाति प्रथा का लाभन उठाने दें. जाति के आधार पर होनेवाले सामाजिक भेदभाव (उंच नीच)और सरकारी भेदभाव (आरक्षण)दोनों को मिटाने का जीतोड़ प्रयासकरें. जातिगत भेदभाव को मिटाकरही हिन्दुओ और हिन्दुस्थानका भला किया जा सकता है