फरह रात के ग्यारह बज चुके हैं, पर छोटा सा कस्बा अब भी जाग रहा है। युवा भारत की आंखों में नींद नहीं है। कुछ नौजवान हाईवे किनारे टहल रहे हैं तो कुछ नौजवान ढाबों एवं अन्य स्थानों पर बीयर, सिगरेट इत्यादि पीकर मस्ती में झूम रहे हैं तो कुछ इंजीनियरिंग काॅलेजों के छात्र-छात्रायें एक दूसरे की बाॅहों में बाॅहें डालकर प्रेम की पीग बजा रहे हैं। आप सोच रहे होंगे कि यह नजारा किसी मेट्रों सिटी का होगा पर नहीं। पर हैरान न हों, छोटे से कस्बा फरह में अब रात का शबाब अपने चरम पर होता है। किसी मशहूर लेखक ने शायद ठीक ही कहा है कि यदि किसी शहर की आजादेख्याली मापनी है तो उस शहर की रात को जियो। ग्रामीण आंचल में बसे और भारतीय सभ्यता से सराबोर कस्बा फरह में अब पश्चिमी सभ्यता इस कदर हावी हो चुकी है कि रात के अंधेरे मेें घर बाहर निकलने में भी शर्म आती है। विकासखण्ड क्षेत्र में संचालित इंजीनियरिंग काॅलेजों के स्टूडंेट्स के पहनावे और अश्लील फूहड़पन के कारण कस्बा में संचालित हास्टलों के समीप रहने वाले कुछ लोग इनके अश्लील फूहड़पन के कारण पलायन करने तक को मजबूर हैं। कस्बा फरह के आसपास हाईवे किनारे करीब एक दर्जन इंजीनियरिंग शिक्षण संस्थान संचालित हैं। जिनमें कई हजार छात्र/छात्रायें अध्यनरत हैं। दूर दराज के छात्र/छात्रायें कालेज परिसरों में उपलब्ध छात्रावासों में किराया अधिक व सुविधायें कम होने के कारण नहीं रह पाते तो वे कस्बा में कम किराये पर संचालित प्राईवेट हास्टलों में रहते हैं। जहाॅ उनके आने-जाने एवं दैनिक क्रियाकलापों पर कोई पाबंदी या दिशा निर्देंश नहीं होते। बस इसी का फायदा उठाकर बढ़ते इनके कदम पश्चिमी सभ्यता के रूप् अश्लील व फूहड़पन की ओर और प्रभावित होती है कस्बे की नई पीढ़ी। फरह के ग्रामीण आंचल के क्षेत्र व कस्बा में जहाॅ कभी एक साथ पूरा परिवार टीवी नहीं देख सकता था अब वहीं कल्चर डवलपमेंट के कारण पूरा परिवार डीजे पर एक साथ नाच सकता है। यह पश्चिमी सभ्यता का असर नहीं तो क्या है। बुजर्ग भले ही इसे भारतीय संस्कृति की राह में रोड़ा मानें लेकिन युवाओं की निगाहों में यह है माइंड रिफ्रेशमेंट। क्या कहते हैं कस्बावासी फरह की कहानी सुनें उन्हीं की जुबानी............ कस्बा के पूर्व चेयरमैन इस्माईल राईन का कहना है कि कभी कस्बा के बाजार में पुरूष भी अद्र्वनग्न कपड़ों में नहीं देखे जा सकते थे लेकिन अब तो कस्बा व बाजार में खुलेआम इंजीनियरिंग काॅलेजों की छात्राओं केा पुरूष छात्रों के साथ अद्र्वनग्न व आपत्तिजनक कपड़ों में देखा जाता है। जिससे निश्चित ही देखने वाले हरेक सभ्य नागरिक को शर्मिंदगी महसूस होती है। जबकि हमारा देश अपने संस्कारों, संस्कुति व संस्कारित परिधानों के कारण ही विश्व में अलग पहचान रखता था। लेकिन अब धीरे-धीरे इसका पतन हो रहा है। उच्चशिक्षा के साथ-साथ क्षेत्र में अश्लीलता व फूहड़पन के पहनावे का भी चलन बढ़ा है। कस्बा के उपेन्द्र अग्रवाल बताते हैं कि करीब 22 वषर््ा पूर्व वे कस्बा में आकर बसे थे और उस समय कस्बा फरह बहुत ही शांत हुआ करता था। यहाॅ की संस्कारित सभ्यता व संस्कृति बहुत ही प्रभावित करने वाली थी। लेकिन जब से यहाॅ उच्च शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ है तो अब यहाॅ पर संस्कारों के हनन एवं पश्चिमी सभ्यता के पूरी तरह से हावी होने की गंध आने लगी है। हालांकि क्षेत्र में इंजीनिरिंग काॅलेजों के खुलने से तरक्की तो हुई है लेकिन वहीं नई पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता की गिरफ्त में आकर संस्कारहीनता की ओर अग्रसर हो रही है। निजामुद्दीन इण्टर काॅलेज में तैनात सहायक अध्यापक सत्यप्रकाश का कहना है। क्षेत्र में इंजीनियरिंग काॅलेजों के खुलने से उच्च शिक्षा में क्षेत्रीय युवाओं केा बहुत लाभ मिला है। लेकिन कस्बा में जिन स्थानों पर बाहरी इंजीनियर छात्र प्राईवेट हास्टलों या घरों में रह रहे हैं उन परिवारों व पड़ोसी परिवारों के बच्चे भी उनकी बुरी आदतों केा अनुसरण कर रहे हैं। जिससे प्रभावित होकर कस्बा व क्षेत्र के छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्र भी सिगरेट व बीयर के शौकीन हो रहे हैं और संस्कारहीनता की ओर बढ़ रहे हैं।